वर्ष 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर एक बार फिर तनाव चरम पर पहुंच गया। सीमा पर झड़पों और हवाई हमलों की खबरों ने पूरे दक्षिण एशिया को चिंता में डाल दिया। इसी बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सुर्खियों में आ गए — इस बार, एक “तत्काल युद्धविराम” की घोषणा के साथ।
ट्रंप की मध्यस्थता: प्रस्ताव या प्रचार?
डोनाल्ड ट्रंप ने 10 मई 2025 को दावा किया कि भारत और पाकिस्तान ने उनकी मध्यस्थता में युद्धविराम पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है और कश्मीर मुद्दे का “स्थायी समाधान” खोजने की दिशा में काम करेगा।
ट्रंप ने यह भी वादा किया कि यदि दोनों देश शांति बनाए रखते हैं, तो अमेरिका उनके साथ व्यापार और रणनीतिक संबंधों को “अभूतपूर्व स्तर” तक ले जाएगा।
भारत की प्रतिक्रिया: “हम खुद सक्षम हैं”
भारत सरकार ने इस बयान को सीधे तौर पर खारिज करते हुए कहा कि यह युद्धविराम किसी बाहरी दबाव या मध्यस्थता का परिणाम नहीं है, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत से संभव हुआ है। भारत ने फिर दोहराया कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इस पर किसी भी तीसरे देश की भूमिका अस्वीकार्य है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: समर्थन और सराहना
पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने ट्रंप की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने संघर्ष को टालने में “महत्वपूर्ण और सकारात्मक” भूमिका निभाई है। पाकिस्तान ने इस पहल को क्षेत्रीय शांति के लिए एक अच्छा संकेत माना।
क्या यह कोई नया अध्याय है?
यह पहली बार नहीं है जब डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात की है। 2019 में भी उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्यस्थता का अनुरोध किए जाने का दावा किया था, जिसे भारत ने सिरे से नकार दिया था।
इस बार भी कहानी कुछ वैसी ही रही — पाकिस्तान ने स्वागत किया, जबकि भारत ने इसे खारिज कर दिया।
निष्कर्ष
2025 की यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर तनाव केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। हालांकि युद्धविराम एक सकारात्मक कदम है, लेकिन स्थायी समाधान तब तक संभव नहीं जब तक दोनों देश ईमानदारी से और बिना किसी बाहरी दबाव के आपसी संवाद को प्राथमिकता नहीं देते।